विराट प्राणायाम की असीम संभावनाएं

विराट प्राणायाम की असीम संभावनाएं

इस बार बात प्राणायाम के विराट स्वरूप की, उसके करिश्मों की और असीम संभावनाओं की। पर पहले एक अद्भुत प्रसंग की चर्चा। विश्व विख्यात वायलिन वादक येहुदी मेनुहिन मांसपेशियों के दर्द से परेशान था। इलाज के लिए दुनिया के अनेक भागों में गया। राहत न मिली। कोई 36 साल की उम्र थी। पर जीवन से निराश हो गया था। तभी उसे किसी ने दक्षिण भारतीय योगगुरू बीके सुंदरराज आयंगार के बारे में बताया। चलने-फिरने से लगभग लाचार मेनुहिन सात घंटे की यात्रा तय करके आयंगार की शरण में पहुंचा। अपनी व्यथा बताई। आयंगार ने कोई साढे तीन घंटों तक उसका योगोपचार किया। पर शुरू के पांच मिनटों में उसकी मांसपेशियों का दर्द जाता रहा। इस तरह अमेरिका में जन्मे उस ब्रिटिश नागरिक के जीवन में चमत्कार हो गया।

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इसके बाद मेनुहिन योग और आयंगार का दीवाना हो गया। योग के प्रति लगाव ऐसा हुआ कि वह शीर्षासन तक करने लगा। बात जब तब के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तक पहुंची तो उन्होंने मेनुहिन को अपने सामने शीर्षासन करने की चुनौती दी। इसलिए कि उन्हें शायद खबरों पर यकीन नहीं था। मेनुहिन ने चुटकी बजाते शीर्षासन कर दिखाया। इससे नेहरू जी इतने उत्साहित हुए कि उन्होंने भी शीर्षासन करके दिखा दिया। यह घटना भारतीय अखबारों की सुर्खियां बनी थी। आयंगार की कीर्ति दुनिया भर में फैल गई। वे मेनुहिन के आग्रह पर इंग्लैंड गए और जल्दी ही यूरोपीय देशों में छा गए थे।

यह प्रसंग जानने के बाद किसी को भी सहज उत्सुकता होगी कि आखिर आयंगार ने ऐसा कौन-सा जादू किया होगा कि दस सालों का रोग पांच मिनट में छू मंतर हो गया होगा। मैंने अब तक आयंगार की जितनी भी पुस्तकें पढ़ी है, किसी में इस बात का खुलासा नहीं है। आयंगार की चर्चित पुस्तक “लाइट ऑन प्राणायाम” में येहुदी मेनुहिन द्वारा लिखी गई प्रस्तावना पढ़ी तो लगा कि मुख्यत: प्राणायाम के जादू से ही वह रोग मुक्त हुआ होगा। उसने प्रस्तावना में लिखा है – “प्राणायाम वायु-संचालन की एक क्रिया है, जो पृथ्वी पर जीवन का निर्धारण करती है। यह वस्तुत: आइंस्टाइन के पदार्थ और ऊर्जा के सिद्धांत को संपूर्णता प्रदान करता है। साथ ही उसे मानव के लिए व्यवहारिक बनाता है।“ कई महीनों की खोज के बाद आखिर एक तस्वीर भी हाथ लगी, जिसमें आयंगार के सामने मेनुहिन नाड़ी शोधन प्राणायाम करता दिख रहा है।

सवाल है कि क्या प्राणायाम इतनी शक्तिशाली योगविद्या है कि पुरानी और दुनिया भर के चिकित्सा विज्ञान के लिए चुनौती बनी बीमारी के मामले में चमत्कार पैदा कर दे? परंपरागत योगविद्या के परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती अपने अध्ययनों और व्यावहारिक ज्ञान के आधार पर योगविद्या पर काफी कुछ बोल गए हैं। उनके अनुभवों को एक साथ और अलग-अलग संदर्भों में कलमबद्ध किया जा चुका है। उन्होंने प्राणायाम के संदर्भ में कहा है – “भारतीय सनातम परंपरा में प्राणायाम का महत्वपूर्ण स्थान है। इसका अभ्यास करने वाले अपने प्राण-संचार से रोगों को दूर कर सकते हैं। यदि किसी को गठिया रोग हो तो योगी कुंभक के साथ अपने हाथों से उसकी टांगों पर मालिश करके दु:ख का निवारण कर सकता है। दरअसल, ऐसा करने से योगी के शरीर से रोगी के शरीर में प्राण-शक्ति का संचार होता है। यही स्थिति चमत्कार पैदा करती है। प्राणायाम का अभ्यास करते समय इष्ट मंत्र का जप चलते रहे तो इसके बड़े फायदे होते हैं। वैदिक सिद्धांतों के मुताबिक भी गायत्री मंत्र का जप करते हुए पूरक, रेचक और कुंभक बेहद ताकतवर होता है।

सिर दर्द, आंतों का दर्द या किसी भी रोग से पीड़ित को मालिश के जरिए प्राणशक्ति भेजकर उसके कष्ट को कम या उसका निवारण किया जा सकता है। योगी गुर्दे, तिल्ली, अमाशय किसी भी अंग की मालिश करते समय अपने शरीर के सूक्ष्म अंगों को भी इस प्रकार आदेश देते हैं – “ओ जीवन कोशिकाओ, मैं तुम्हें आज्ञा देता हूं कि तुम अपने-अपने कार्य को भली प्रकार निभाओ” ऐसा दृढ़तापूर्वक कहने से प्राण-शक्ति आज्ञा का पालन करती है। दूसरों में प्राण-संचार करते समय मंत्रपाठ आवश्यक होता है। इस विधि से दूरस्थ व्यक्ति को भी बैठे-बैठे प्राण-संचार द्वारा निरोग किया जा सकता है। बेतार विद्युत तरंगों की तरह प्राण भी अदृश्य दिशाओं में पहुंचता है। यह क्रिया करने वाले योगी अपनी शक्ति के क्षय की पूर्ति कुंभक द्वारा करते हैं।

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प्राणायाम का संबंध श्वास से रहते हुए भी यह सारे शरीर और सभी आंतरिक अंगों को व्यायाम का अवसर देता है। यह सब प्रकार के रोगों का नाश करके स्वास्थ्य प्रदान करता है। पाचन-शक्ति बढ़ाता है। तेज की वृद्धि करता है। कामवासनाओं से मुक्ति दिलाता है। कुंडलिनी-शक्ति को जगाता है। प्राणायाम का अभ्यास करने वालों का शरीर हल्का, नीरोग और सुंदर होता है। उसकी कण्ठध्वनि मधुर होती है। सदा प्रसन्नचित्त और ऊर्जावाण बना रहता है। दुनिया भर में हुए अनेक अनुसंधानों से ये बातें स्थापित हो चुकी हैं। यह भी साबित हुआ कि प्राणायाम का अभ्यास करते समय इष्ट मंत्र का जप चलते तो इसके बड़े फायदे होते हैं। वैदिक सिद्धांतों के मुताबिक भी गायत्री मंत्र का जप करते हुए पूरक, रेचक और कुंभक सबसे ज्यादा ताकतवर होता है”

हठयोग के प्रख्यात योगगुरू बीकेएस आयंगार ने भी कहा है – “प्राणायाम मनुष्य के शरीर और आत्मा को जोड़ने वाली कड़ी है। साथ ही योग के चक्र की धुरी है। तभी इसे महातपस या ब्रह्मविद्या कहा जाता है।“  प्राय: सभी हठ योगियों ने प्राणायाम की विद्या का विस्तार करके इसके भिन्न-भिन्न अभ्यासों को भिन्न-भिन्न प्रकृति वालों की सुविधा के लिए बताया है। आमतौर पर प्राणायाम की तीन-चार विधियां ही प्रचलित हैं। पर इसकी और भी विधियां हैं। उज्जायी, अनुलोम, विलोम, प्रतिलोम, सूर्यभेदन, शीतकारी, शीतली, भस्त्रिका, कपालभाति, भस्त्रिका, भ्रामरी, नाड़ी शोधन आदि। इन विधियों की भी कई उप विधियां या अवस्था हैं। नाड़ी शोधन और कपालभाति पर कई अनुसंधान हो चुके हैं। प्राणायाम के रहस्यों पर से जैसे-जैसे पर्दा उठ रहा है, उसको देखते हुए आने वाले समय में यह हठयोग से इत्तर एक स्वतंत्र विषय बन जाए तो हैरानी न होगी। दुनिया भर में प्राणायाम की विभिन्न विधियों पर अध्ययन किया जा रहा है। पहले किए गए अनेक अध्ययनों के नतीजे सामने आ चुके हैं। ज्यादातर नतीजे उत्साहवर्द्धक हैं।

लाइलाज पार्किंसंस रोग चिकित्सा विज्ञान के लिए बड़ी चुनौती है। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के अनुसार, पार्किंसन रोग यानी पीडी दुनिया भर में मृत्यु का 14वां सबसे बड़ा कारण है। यह दिमाग की उन तंत्रिकाओं को प्रभावित करता है, जिनसे डोपामाइन का उत्पादन होता है। इससे नर्व्ज सिस्टम की संतुलन संबंधी कार्य-क्षमता बाधित होती है। हार्मोन के क्षरण वाली इस बीमारी में कृत्रिम हार्मोन एल डोपा भी ज्यादा दिनों तक काम नहीं आता। पर योग रिसर्च फाउंडेशन ने अपने अध्ययन में पाया कि योगाभ्यासों में मुख्यत: नाड़ी शोधन प्राणायाम के अभ्यास से रोगियों की आक्रमकता कम हुई और हार्मोन क्षरण की रफ्तार धीमी पड़ गई। प्राणायाम से नाड़ी मंडल में संतुलन बना और मस्तिष्क केंदों की खतरनाक क्षतिकारक प्रतिक्रिया नियंत्रित हो गई। ऐसा इसलिए हुआ कि प्राण-शक्ति से मस्तिष्क के तंतुओं का पोषण हुआ और वे फिर से सक्रिय होने लगे।

एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ बिहेवियरल हेल्थ एंड एलाइड साइंसेज, भोपाल और देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार ने किशोरवय वालों की आक्रमकता पर कपालभाति के प्रभाव का अध्ययन किया है। इसका नतीजा है कि योग की यह क्रिया आक्रमकता पर काबू पाने में बेहद प्रभावी है। पतंजलि योग अनुसंधान संस्थान ने भी कपालभाति में काफी काम किया है। हालांकि कलापभाति को लेकर विवाद भी पुराना है कि यह प्राणायाम है या शोधन-क्रिया। पर इसे व्यापक रूप से प्राणायाम का हिस्सा माना जा चुका है।

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बहरहाल, यह स्थापित किया जा चुका है कि प्राण का संबंध मन से है और संकल्प-शक्ति के माध्यम से मन का जीवात्मा से संबंध रहता है। यदि प्राणवायु की तरंगों पर नियंत्रण कर लिया जाए तो मानव जीवन के लिए बड़ी बात होगी। इसलिए प्राणायाम बड़े महत्व का हो गया है। इसकी महत्ता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि लोनावाला स्थित कैवल्यधाम योग संस्थान में प्राणायाम में तीन वर्षीय पाठ्यक्रम प्रारंभ किया जा चुका है। ईशा योग के प्रणेता सद्गुरू जग्गी वायुदेव के रोज के रूटीन में न आसन का स्थान है और न ही कसरत का। पर प्राणायाम जरूर करते हैं। इन बातों से प्राणायाम की शक्ति का सहज अंदाज लगाया जा सकता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

 

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